डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद से भारत और अमेरिका के संबंध कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने प्रवासन नीतियों को सख्त कर दिया है, जिससे अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों को निर्वासित किया जा रहा है। इसके अलावा, अमेरिका भारतीय वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाने पर भी विचार कर रहा है।
रक्षा क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच मतभेद गहराते जा रहे हैं। अमेरिका ने भारत द्वारा रूसी सैन्य उपकरणों की खरीद को लेकर अपनी आपत्ति जताई है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक ने भारत से रूसी हथियार खरीद बंद करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि भारत को रूसी रक्षा प्रणाली पर निर्भरता कम करनी होगी, जिससे अमेरिका-भारत रणनीतिक संबंध मजबूत हो सकें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत को उन्नत एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने की पेशकश की थी, जिससे भारत को अमेरिकी रक्षा तकनीक की ओर आकर्षित किया जा सके। हालांकि, अमेरिकी दबाव के बावजूद, अमेरिकी रिपोर्टों में स्वीकार किया गया है कि भारत की सेना रूसी हथियारों पर अत्यधिक निर्भर है।
भारत और रूस के रक्षा संबंध
अमेरिकी कांग्रेस की 2021 की एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत की रक्षा क्षमता काफी हद तक रूसी हथियारों पर निर्भर है। रिपोर्ट के अनुसार, यह निर्भरता निकट भविष्य में भी बनी रहेगी क्योंकि रूस भारत को उन्नत सैन्य तकनीक किफायती कीमतों पर उपलब्ध कराता है, जो अन्य देशों से प्राप्त करना मुश्किल है।
इतिहास में रूस भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है। 2010 से अब तक भारत ने अपने कुल रक्षा आयात का लगभग 62% हिस्सा रूस से खरीदा है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के आंकड़ों के अनुसार, भारत रूस से हथियार खरीदने वाला सबसे बड़ा देश है और रूस के कुल हथियार निर्यात का लगभग एक-तिहाई हिस्सा भारत को जाता है।
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2015 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से भारत की रूस से हथियार खरीदने की निर्भरता धीरे-धीरे कम हो रही है। इसके बावजूद, हाल ही में भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी है, जिसे अमेरिका की पैट्रियट और THAAD प्रणाली से अधिक उन्नत माना जाता है।
अमेरिका लगातार भारत पर अपने रक्षा उपकरण अपनाने का दबाव बना रहा है, लेकिन भारत और रूस के लंबे समय से चले आ रहे सैन्य सहयोग और रूसी हथियारों की किफायती लागत को देखते हुए भारत के लिए अचानक बदलाव करना आसान नहीं होगा।
S-400 और THAAD दोनों ही उन्नत वायु रक्षा प्रणाली हैं, लेकिन वे अलग-अलग उद्देश्यों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं और उनकी क्षमताएँ भी भिन्न हैं। यहाँ उनके बीच मुख्य अंतर का विश्लेषण दिया गया है:
1. परिचय
S-400 ट्रायम्फ (रूस):
एक लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली (SAM) प्रणाली है, जिसे विभिन्न प्रकार के हवाई खतरों जैसे कि विमान, क्रूज़ मिसाइल, बैलिस्टिक मिसाइल और हाइपरसोनिक लक्ष्यों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
THAAD (अमेरिका):
एक विशेष मिसाइल रक्षा प्रणाली है, जो कम और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को उनके अंतिम (टर्मिनल) चरण में नष्ट करने के लिए बनाई गई है।
2. रेंज और लक्ष्य क्षमताएँ
S-400:
यह विमान, क्रूज़ मिसाइल, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है।
अधिकतम रेंज: 400 किमी (विमानों के लिए), 60 किमी (बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए)।
THAAD:
विशेष रूप से बैलिस्टिक मिसाइलों को उनके अंतिम चरण में रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
प्रभावी अवरोधन सीमा: 200 किमी, अधिकतम ऊँचाई क्षमता 150 किमी।
3. अवरोधन (इंटरसेप्शन) तकनीक
S-400: विस्फोटक वारहेड और प्रॉक्सिमिटी फ्यूज़ का उपयोग करके लक्ष्यों को नष्ट करता है।
THAAD: हिट-टू-किल तकनीक का उपयोग करता है, जिसमें यह सीधे लक्ष्य से टकराकर उसे नष्ट कर देता है।
4. रडार और ट्रैकिंग क्षमताएँ
S-400: मल्टी-फंक्शन फेज़्ड-अरे रडार से लैस है, जो 600 किमी तक खतरों का पता लगा सकता है।
THAAD: AN/TPY-2 रडार का उपयोग करता है, जो 1,000 किमी से अधिक दूरी तक बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक कर सकता है।
5. तैनाती और गतिशीलता
S-400: एक मोबाइल प्रणाली है, जिसमें लॉन्चर, रडार और कमांड सेंटर शामिल होते हैं, जिससे इसे आसानी से तैनात किया जा सकता है।
THAAD: यह भी एक मोबाइल प्रणाली है, लेकिन इसका मुख्य ध्यान मिसाइल रक्षा पर केंद्रित है, न कि संपूर्ण वायु रक्षा पर।
6. आधुनिक युद्ध में भूमिका
S-400: एक एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली के रूप में कार्य करता है, जो विभिन्न प्रकार के हवाई खतरों के खिलाफ बहु-स्तरीय सुरक्षा प्रदान करता है।
THAAD: एक बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली है, जो केवल उच्च ऊँचाई वाले मिसाइल खतरों को रोकने पर केंद्रित है, न कि सामान्य वायु रक्षा पर।
7. किन देशों में उपयोग हो रहा है?
S-400: रूस, चीन, भारत, तुर्की और कई अन्य देशों द्वारा उपयोग किया जाता है।
THAAD: अमेरिका, दक्षिण कोरिया, UAE, सऊदी अरब और कुछ अन्य सहयोगी देशों द्वारा संचालित किया जाता है।
8. कौन-सा सिस्टम बेहतर है?
यदि लक्ष्य संपूर्ण वायु रक्षा है, तो S-400 बेहतर विकल्प है क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के खतरों से निपट सकता है।
यदि ध्यान केवल मिसाइल रक्षा पर है, तो THAAD अधिक प्रभावी है, क्योंकि यह उच्च ऊँचाई पर सटीक हिट-टू-किल तकनीक का उपयोग करता है।
दोनों प्रणालियाँ अलग-अलग उद्देश्यों के लिए बनाई गई हैं, इसलिए वे एक-दूसरे के पूरक के रूप में कार्य कर सकती हैं बजाय कि वे सीधे प्रतिस्पर्धा में हों।